Published - 18 Dec 2020
देश में नए कृषि कानूनों के विरोध के बीच केंद्र सरकार ने गन्ना किसानों के लिए चीनी निर्यात पर 3,500 करोड़ रुपये सब्सिडी दिए जाने को मंजूरी दे दी है। इससे देश के 5 करोड़ गन्ना किसानों को सीधे फायदा मिलेगा। इस बार 60 लाख टन चीनी निर्यात की जाएगी। इस पर सब्सिडी सीधे गन्ना किसानों के बैंक खाते में ट्रांसफर की जाएगी। यह सब्सिडी अक्टूबर से शुरू हो रहे विपणन सत्र 2020-21 के लिए है।
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केंद्रीय मंत्री प्रकाशजावड़ेकर ने कहा कि किसानों और शुगर मिलों की समस्याओं से निपटने के लिए कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने 60 लाख टन चीनी निर्यात को मंजूरी दी है। साथ ही गन्ना किसानों को निर्यात पर सब्सिडी देने का फैसला भी लिया गया है। उन्होंने कहा कि किसान शुगर मिल को गन्ना बेचते हैं। फिर शुगर मिलों में शुगर का अतिरिक्त स्टॉक पड़े रहने के कारण मिल मालिक गन्ना किसानों का भुगतान समय पर नहीं कर पाते हैं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने चीनी के अतिरिक्त स्टॉक को निकालने और किसानों को समय पर गन्ना भुगतान कराने के लिए ही चीनी निर्यात का फैसला लिया है।
कैबिनेट की बैठक में फैसला लिया गया कि \पहले घोषित सब्सिडी में से 5,361 करोड़ रुपये एक हफ्ते में किसान के खाते में जमा होगा और इसके बाद 3500 करोड़ की सब्सिडी दी जाएगी। इसके बाद 18,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी निर्यात के बाद सीधे किसानों के खाते में जमा होगी। दोनों फैसलों का मतलब चालू साल में मिलों को गन्ना किसानों का समय से भुगतान करने में सक्षम बनाना और गन्ने के बकाये का भुगतान करना है। सरकार के सूत्रों के मुताबिक 10 दिसंबर 2020 तक 2019-20 सत्र से गन्ने का 3,574 करोड़ रुपये के करीब बकाया है। यह मंजूरी ऐसे समय में आई है, जब हजारों किसान केंद्र सरकार के हालिया कृषि अधिनियमों का विरोध कर रहे हैं, जिनमें तमाम किसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक क्षेत्र के हैं।
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के अनुसार 60 लाख टन चीनी का निर्यात किया जाएगा। उनके मुताबिक, इस साल चीनी का उत्पादन 310 लाख टन रहने की संभावना है जबकि देश में चीनी की खपत 260 लाख टन है। चीनी का दाम कम होने की वजह से किसान और चीनी मिलें संकट में हैं। चीनी के 60 लाख टन अनुमानित निर्यात से उद्योग को मौजूदा अंतरराष्ट्रीय दाम के हिसाब से करीब 18,000 करोड़ रुपये राजस्व की मदद मिलेगी और इससे उन्हें चालू विपणन वर्ष के दौरान बकाये के भुगतान में मदद मिलेगी।
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल दोनों ने ही केबिनेट के इस फैसले का स्वागत किया है। दोनों नेताओं ने कहा है कि यह किसानों के हित में लिया गया फैसला है। सीसीईए ने चालू साल के लिए 6 रुपये प्रति किलो सब्सिडी को मंजूरी दी है, जो 2019-20 में करीब 10.50 रुपये प्रति किलो थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बेहतर होने को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है। प्रकाश जावडेकर के अनुसार सब्सिडी का मकसद हैंडलिंग, अपग्रेडिंग और अन्य प्रसंस्करण लागत व अंतरराष्ट्रीय और आंतरिक परिवहन और ढुलाई शुल्क सहित विपणन लागत पर आने वाले व्यय की भरपाई करना है।
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश है और पिछले 2 साल से चीनी निर्यात पर सब्सिडी दे रहा है। जिससे चीनी का अतिरिक्त स्टॉक कम किया जा सके और नकदी के संकट से जूझ रही चीनी मिलों को किसानों को गन्ने के दाम का बकाया भुगतान करने में मदद मिले। आपको बता दें कि इसके पहले के विपणन वर्ष 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) में सरकार ने करीब 10,448 रुपये प्रति टन निर्यात सब्सिडी दी थी, जिसका खजाने पर 6,268 करोड़ रुपये बोझ पड़ा था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 (अक्टूबर-सितंबर) सत्र में 60 लाख टन निर्यात का अनिवार्य कोटा तय किया गया था, जबकि मिलों ने 57 लाख टन चीनी का निर्यात किया।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। इम्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा कि हालांकि मौजूदा सत्र के ढाई महीने बीत चुके हैं, लेकिन कुछ बड़े आयातक देश अभी भी पूछताछ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि थाईलैंड मेंं चीनी का उत्पादन गिरने से भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है कि वह अपने परंपरागत बाजारों इंडोनेशिया व मलेशिया आदि को निर्यात कर सके और बाजार पर कब्जा बना सके।
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