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बारिश के मौसम में ऐसे करें पशुओं की देखभाल, बढ़ जाएगा दूध का उत्पादन

प्रकाशित - 01 Jul 2023

पशुओं का दूध बढ़ाने के टिप्स और मौसमी बीमारियों से बचाव की पूरी जानकारी

बारिश के मौसम में अक्सर पशुओं को ज्यादा बीमारी होती है, इसलिए बारिश में पशुओं की खास देखभाल बेहद जरूरी है। इस समय पशुओं के रखरखाव पर भी ध्यान देना जरूरी होता है। पशुओं के दूध उत्पादन (Milk Production) में भी इस समय कमी देखने को मिलती है, खासकर तब जब मौसम की वजह से पशु किसी बीमारी का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में किसानों के लिए जरूरी है कि पशुओं की देखभाल के लिए वे विशेष इंतजाम रखें। बारिश के मौसम में घास की उपलब्धता काफी हो जाती है। पशुओं को घास के रूप में काफी चारा मिलता है। आसपास हरियाली हो जाती है। मौसम भी हर तरफ हरा भरा और सुहाना होता है। लेकिन बारिश के मौसम (Weather) के शुरुआती दौर में कई सारी बीमारियां भी साथ आ जाती है। जो सबसे ज्यादा पशुओं को परेशान करती है। मौसमी बीमारियों की वजह से कई बार मवेशियों की मौत भी हो जाती है। छोटे मोटे रोगों की वजह से पशुओं का पाचन तंत्र और उसके खाने की इच्छा भी प्रभावित होती है। कभी बुखार तो कभी घाव का संक्रमण अक्सर पशुओं में देखने को मिलता है।

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ट्रैक्टर जंक्शन के इस पोस्ट में हम बारिश के मौसम में पशुओं की देखभाल कैसे करें, पशुओं में होने वाली बीमारी का रोकथाम, दूध बढ़ाने के उपाय (Ways to Increase Milk) आदि के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

बारिश के मौसम में पशुओं को कैसा आहार दें

हर मौसम में पशुओं के लिए विशेष आहार होता है, ताकि मौसमी परिस्थितियों के अनुसार मवेशियों का शरीर सही तरीके से सामंजस्य स्थापित कर सकें। पशु बेजुबान होते हैं, उन्हें किसान जैसा चारा दे दें वो खा लेते हैं। लेकिन काफी ज्यादा किसान बारिश के मौसम में ज्यादा घास दे देते हैं। इस समय घास की पैदावार भी ज्यादा होती है। इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि बारिश के मौसम में ज्यादा घास या गीला चारा देना पशुओं के पाचन के लिए सही नहीं होता। इससे पशुओं में दस्त लगने की शिकायत हो जाती है। जब पशु दस्त की समस्या से ग्रस्त हो जाते हैं तो शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं। दुधारू पशुओं के पालन में इस बात का ज्यादा ध्यान रखें। दुधारू पशुओं के साथ ऐसी समस्या होने पर किसानों को काफी ज्यादा नुकसान हो जाता है। इसलिए पशुओं को गीला चारा यानी घास के साथ कम से कम 40% तक सूखा चारा जरूर दें। इससे आहार में संतुलन रहेगा। बारिश के मौसम में पशुओं को देने वाले आहार के मामले में इन तीन प्वाइंट का जरूर ध्यान रखें।

पहला तो यह है कि पशुओं को 60% घास के साथ कम से कम 40% तक सूखा चारा दें।

दूसरा, पशुओं को उतना चारा ही दें जितना वे खाते हैं। सुबह और शाम का चारा एक साथ न लगाएं। कई बार किसान यह भी सोचते हैं कि दोनों समय का चारा एक साथ लगा लेते हैं, इससे समय की बचत होगी और शाम को आसानी से पशुओं को चारा दिया जा सकता है। लेकिन ऐसा नहीं है, सूखे चारे में गीलापन आ जाने से उसमें फफूंद की समस्या हो जाती है। फफूंद पशुओं में बदहजमी का कारण बनती है। इसलिए दुधारू पशुओं के लिए इस बात का खास ध्यान रखें, ताकि उसे बदहजमी या दस्त की शिकायत न हो। ताकि पशु कमजोर न हो और पशुओं के दूध उत्पादन के क्षमता में भी कमी न हो।

पशुओं को गंदा चारा, पानी से दूर रखें। पशुओं के रहने के लिए सूखे स्थान की व्यवस्था रखें।

ये तो बारिश के मौसम में पशुओं के खाने-पीने और देखभाल की बात हो गई। अगर पशुओं की अच्छी तरह देखभाल हो तो ज्यादातर रोगों से बचा जा सकता है। लेकिन पशुओं की सही देखभाल के लिए बारिश के मौसम में पशुओं में होने वाले रोग, रोगों के उपचार और उसके कारण को समझना जरूरी है। हालांकि कुछ संक्रामक रोगों के लिए पशुओं का टीकाकरण कराया जा सकता है। अगर किसान इन बातों का ध्यान रखते हैं तो पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता प्रभावित नहीं होगी। लेकिन अच्छे खाने पीने और देखभाल के साथ बारिश के मौसम में होने वाले बीमारियों के लिए जरूरी रोकथाम किया जाना चाहिए।

बारिश के मौसम में पशुओं में होने वाले सामान्य रोग :

बारिश का मौसम (Rainy Season) मवेशियों के लिए रोगों का मौसम माना जाता है। इस समय पशुओं की खास देखभाल और रोगों से बचाव तो जरूरी है ही, साथ ही यदि पशु रोग के शिकार हो जाए तो उसकी प्रभावी रोकथाम किया जाना जरूरी है।

(1)  खुरपका और मुंहपका रोग

बारिश के मौसम में आने वाला यह संक्रामक रोग पशुओं को बहुत परेशान करता है। यह रोग पशुओं के खुर और मुंह को प्रभावित करती है। खुर और मुंह में घाव होने की वजह से पशु, खाना पीना कम कर देते है। इससे पशुओं को शारीरिक रूप से काफी नुकसान पहुंचता है। बारिश के मौसम में पशुओं को इस रोग के लिए टीकाकरण करवा दें। खासकर दुधारू पशुओं का टीकाकरण (Vaccination of Dairy Animals) जरूर करवाएं। इससे पशु इस बीमारी से दूर रहेगा। लेकिन यदि मवेशी इस रोगी से पीड़ित हो जाए, तो मुंह के घाव को लगातार फिटकरी के पानी से धोएं। इसके अलावा खुर के घाव को फिनायल के पानी से धोएं। घाव रोज साफ सफाई करें। 15 से 20 दिन तक यह बीमारी दूर हो जाती है।

(2) पशुओं को परजीवियों से बचाएं

जूं, चीचड़ और पिस्सू जैसे बाहरी परजीवियों के प्रकोप से भी पशुओं को बचाया जाना जरूरी है। पशुओं को खुले हवादार और सूखे इलाकों में रखें। साथ ही बाड़े की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।

(3) थनैला रोग

यह रोग दुधारू पशुओं में बेहद आम है, ज्यादातर मामलों में यह रोग बारिश के मौसम में ही देखा जाता है। इस रोग के होने से पशुओं को दूध दुहने के समय थन में दर्द होने लगता है। बारिश के मौसम में जब जीवाणुओं का प्रकोप बढ़ जाता है, तब इस रोग के ज्यादा चांस होते हैं। पशुओं के दूध को दुहने के कुछ समय बाद तक गाय के थनों का मुंह खुला होता है। ऐसी स्थिति में पशु जब फर्श पर बैठते हैं तो फर्श पर मौजूद कुछ जीवाणु उसके थनों में चले जाते हैं। इससे थनैला रोग हो जाता है। बारिश का मौसम हो या गर्मी या सर्दी, पशु को दूध दुहने के 30 से 40 मिनट तक बिल्कुल बैठने न दें। अगर कभी मवेशी थनैला रोग का शिकार हो जाता है तो साफ गर्म पानी में जंतु नाशक दवा की कुछ बूंदें घोलकर थनों की नियमित सफाई करें। इससे थनैला रोग का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है।

(4) जुकाम और निमोनिया

तेज बरसात में पशुओं को बाहर न रखें। बारिश में भीगने से पशुओं में जुकाम और निमोनिया जैसे रोग का खतरा बढ़ जाता है।

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